Saturday, April 27, 2024
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राष्ट्रवाद से बड़ा कोई धर्म नहीं, गीता से बड़ा कोई सत्य नहीं

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यह पाश्चात्य शिक्षा पद्धति का ही असर है कि आधुनिक पीढ़ी अपनी मातृभूमि, मातृभाषा, संस्कृति एवं सनातन धर्म का उपहास करने में आनंद की अनुभूति करती है | कई ऐसे आधुनिक लोग मिल जायेंगे जो कि पाश्चात्य संस्कृति, धर्म एवं भाषा की तो प्रशंसा करेंगे परन्तु अपनी मातृभूमि, मातृभाषा, संस्कृति एवं सनातन धर्म का उपहास करेंगे | यही सोच आगे जाकर आजादी गैंग और देशद्रोही सोच का रूप ले लेती है | यह समस्या शायद आज कुछ लोगों को छोटी दिखाई दे रही है परन्तु यह आगे जाकर बहुत ही खतरनाक परिणाम दिखा सकती है | उदाहरण देना शुरू करूँ तो कई दे सकता हूँ जिनसे कि यह बात साबित हो कि यह सोच देश की एकता, अखंडता एवं सम्मान के लिए बहुत ही नुकसानदायक है |

अल्पज्ञान अज्ञान से ज्यादा खतरनाक है क्योंकि ज्यादातर अज्ञानियों को यह पता होता है कि वो अज्ञानी हैं और वो उसी हिसाब से कदम उठाते हैं परन्तु ज्यादातर अल्पज्ञानी इसी गलतफहमी में रहते हैं कि उन्हें सब कुछ पता है | यही गलतफहमी आज की तथाकथित आधुनिक शिक्षित पीढ़ी के कई लोगों को है, हालाँकि मैं यह नहीं कहूंगा कि सभी लोग इस गलतफहमी के शिकार हैं | आज आपको कई लोग मिल जायेंगे जो कि बिना हिन्दू धर्म के ग्रन्थ पढ़े ही हिन्दू धर्म के ग्रंथों के ज्ञान पर सवाल उठाने लगते हैं तथा गलत जानकारी को सच मान लेते हैं तथा उसे अन्य लोगों तक भी पहुँचाने लगते हैं | यह आधुनिक शिक्षा पद्धति की मेहरबानी है कि देश के ज्यादातर लोगों ने हिन्दू धर्म ग्रन्थ पढ़े ही नहीं हैं, बस आधुनिक किताबी ज्ञान के बल पर इन ग्रंथों की आलोचना करना ही इनको आता है | ऐसे अल्पज्ञानियों को मातृभूमि, राष्ट्रवाद, मातृभाषा, गौ-माता, धर्म, दया आदि शब्द बस ढकोसला और अंधश्रद्धा नजर आते हैं | जबकि यदि हिन्दू धर्म ग्रन्थ कोई व्यक्ति स्वयं पढ़े तो न तो वह किसी अन्धविश्वाश का शिकार होगा, न ही देशद्रोह सीखेगा और न ही किसी तरह की ऊंच-नीच, भेदभाव आदि करेगा | परन्तु समस्या यह है कि आजकल हिन्दू धर्म ग्रन्थ स्वयं पढ़ने के लिए समय कौन देता है | कई लोगों को बस सोशल साइट्स, न्यूज़ एजेंसी, फर्जी लेख आदि माध्यमों से मिला अधूरा या झूठा ज्ञान पाना ही उचित लगता है और वो उसी को सच मानकर उसका अनुसरण करते है |

हो सकता है कि कुछ अल्पज्ञानियों को इस लेख का शीर्षक अजीब लगे | हो सकता है कि वो कहें कि गीता में भगवान ने कहा है कि वही सत्य हैं, वही धर्म हैं तो फिर राष्ट्रवाद से बड़ा कोई धर्म नहीं यह बात कैसे सत्य हो सकती है | राष्ट्रवाद भी धर्म का ही अभिन्न अंग है | जो राष्ट्रवादी नहीं वो धार्मिक भी नहीं हो सकता | धर्म यही सिखाता है कि मातृभूमि एवं इंसानियत की रक्षा करो, जीव पर दया करो, प्रकृति से प्रेम करो और जो व्यक्ति यह नहीं कर सकता वो धार्मिक तो हो ही नहीं सकता | सच्चा राष्ट्रभक्त मातृभूमि का भला चाहता है, उसे पता है कि किसी भी तरह की उंच-नीच भेदभाव मातृभूमि की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक हैं और वो उंच-नीच भेदभाव का विरोधी होता है, प्रकृति की रक्षा किये बिना जीवन की रक्षा नहीं हो सकती और बिना जीवन के राष्ट्र और पृथ्वी का क्या मतलब है अतः वो प्रकृति से भी प्रेम करता है, देशप्रेम और प्रकृतिप्रेम जीव दया की भावना भी पैदा करते हैं अतः वो व्यक्ति जीव पर दया भी करता है, ये सब इंसानियत का असली हिस्सा हैं अतः वो इंसानियत का पक्षधर है | संक्षेप में कहूँ तो राष्ट्रवाद ही असली धर्म है और जो राष्ट्रवादी नहीं वो धार्मिक भी नहीं हो सकता | यही सब ज्ञान गीता ने दिया है | इसीलिए मैंने कहा कि राष्ट्रवाद से बड़ा कोई धर्म नहीं और गीता से बड़ा कोई सत्य नहीं | सिर्फ मंदिरों एवं अन्य धर्मस्थलों में जाना आपको धार्मिक नहीं बनाता है | यदि आप धर्म का पालन नहीं करते तो लाख मंदिरों के चक्कर लगाकर भी आप अधर्मी ही रहेंगे |

हो सकता है कि आप अपने जीवन में इतने ज्यादा व्यस्त हों कि आप के पास हिन्दू धर्म के सभी ग्रन्थ पढ़ने का समय न हो परन्तु कम से कम आप इस जीवन में गीता तो पढ़ ही सकते हैं | सिर्फ एक ग्रन्थ | सिर्फ गीता ही पढ़ लेंगे तो आप का उद्धार हो जायेगा और आपको धर्म और सत्य का ज्ञान हो जाएगा | यदि आप हिन्दू धर्म के नहीं हैं और किसी और धर्म का पालन करते हैं तब भी आप कम से कम गीता को एक किताब की तरह ही पढ़ तो सकते हैं ? इस से आपका धर्म भ्रष्ट नहीं होगा |

आज आवश्यकता है कि शिक्षा पद्धति की निष्पक्ष समीक्षा की जाये तथा उसमें आवश्यक परिवर्तन लाये जाएं | परन्तु यह भी एक दुखद सत्य है कि यदि किसी सरकार ने ऐसा करने की कोशिश की तो उसको तथाकथित सेक्युलर जमात, तथाकथित आधुनिक पीढ़ी एवं अन्य अल्पज्ञानियों का विरोध झेलना पड़ेगा और शिक्षा के भगवाकरण के आरोप लगाए जायेंगे | और यह भी एक सत्य है कि यदि ये परिवर्तन न किये गए तो कुछ सालों बाद यही गलत शिक्षा पद्धति इस देश के विनाश का कारण भी बन सकती है | दुखद है कि आज विपक्षी पार्टियों ने विपक्ष का मतलब सिर्फ मौजूदा सरकार का हर बात पर विरोध करना बना दिया है | परन्तु मेरी व्यक्तिगत राय यही है कि सरकार को ऐसे सभी विरोधियों के विरोध को दरकिनार करते हुए शिक्षा पद्धति में आवश्यक परिवर्तन करने चाहिए ताकि देश की एकता, अखंडता, इंसानियत एवं आपसी प्रेम को मजबूती मिले |

( फोटो साभार – lawnn.com)

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Varun Shrivastava
Varun Shrivastavahttp://www.sarthakchintan.com
He is a founder member and a writer in SarthakChintan.com.
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