Wednesday, April 24, 2024
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मासूमों की निर्मम हत्या करने वाले आतंकवादियों का कैसा मानवाधिकार ?

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जैसे ही देश आतंकवाद और आतंकवादियों के खिलाफ एक जुट होकर आवाज उठाने लगता है तथा सरकार एवं सेना उचित कार्रवाही शुरू करती है, कई मीडिया के लोग रोज नई नई भावुक कथाएं लेकर आ जाते हैं जिनमें कि आतंकियों को गरीब, मासूम, मजबूर, लाचार, भटके हुए नौजवान आदि सम्बोधन दिए जाने लगते हैं | कई तथाकथित एक्टिविस्ट आतंकियों के मानवाधिकार की बात करने लगते हैं और उनको फांसी की सजा एवं उनके एनकाउंटर का विरोध करने लगते हैं | जब सामने से सेना पर अंधाधुंध गोलियाँ चल रहीं हों तो ऐसे में सेना के जवान आखिर क्या करें ? मानवाधिकार के बारे में सोचकर खुद शहीद हो जाएं या फिर ऐसे आतंकवादियों को खत्म कर के इस देश की जनता की सुरक्षा करें ? और जब कई मासूमों की हत्या करने वाले या उसका षड़यंत्र करने वाले आतंकवादी न्यायालय में पेश किये जाए हैं तो जज उनको फांसी की सजा न दें तो क्या उनका सम्मान समारोह करें ?

पहली बात तो यह कि यदि गरीबी ही लोगों को आतंकवादी बनाती है तो फिर तो इस देश में कई गरीब लोग हैं | वो सब अब तक आतंकवादी क्यों नहीं बने ? अब्दुल कलाम भी गरीब थे और मुस्लिम भी थे, वो आतंकवादी बनने की जगह एक महान वैज्ञानिक तथा राष्ट्रभक्त इंसान कैसे बन गए ?

किसी भी हाल में किसी आतंकवादी को मासूम नहीं कहा जा सकता | जो व्यक्ति कई मासूम लोगों की जान लेने के षड्यंत्र में शामिल हो सकता है, मासूम लोगों की निर्मम हत्या का वीडियो बना सकता है, महिलाओं एवं बच्चों पर अत्याचार कर सकता है एवं उनकी हत्या कर सकता है, देशद्रोह कर सकता है वो मासूम कैसे हो सकता है ? और ऐसे आतंकवादियों पर किसी भी तरह का रहम क्यों किया जाये ?

आतंकवादियों ने जिस तरह से क्रूरता एवं राक्षसी प्रवृत्ति की सारी हदें पार की हैं वो कोई मासूम इंसान तो नहीं कर सकता | चिंता की बात यह है कि कई नौजवान इन आतंकी संगठनों से प्रभावित होकर इन से जुड़ रहे हैं | इस समय मीडिया और जाने माने तथाकथित एक्टिविस्ट लोगों का काम तो यह होना चाहिए था कि ये लोग इन आतंकी संगठनों के खिलाफ बोलें तथा लोगों को इनसे न जुड़ने के लिए कहें | लेकिन यहाँ तो ऐसे कई लोग उल्टा ही काम कर रहे हैं | इन आतंकी संगठनों को मासूमों का झुण्ड साबित करने में लगे हैं, इनकी मौत का ऐसे गुणगान किया जाता है जैसे कि कोई क्रांतिकारी शहीद हुआ हो | इनकी मौत पर इस तरह छाती पीटी जाती है जैसे सेना ने किसी देशभक्त की हत्या कर दी हो | इनको न्यायालय यदि फांसी की सजा दे दें तो फांसी रोकने के लिए आधी रात को न्यायालय के दरवाजे खटखटाये जाते हैं |

जिन आतंकिओं के लिए लोगों के दिलों में नफरत होनी चाहिए ताकि लोग आतंक की राह से नफरत करें और देशभक्त बनें, उन के प्रति आये दिन इस तरह की बयानबाजी करके ये लोग नफरत की जगह सहानुभूति की भावना क्यों लाना चाहते हैं ? आये दिन इस तरह की बातें करके कहीं न कहीं ये लोग यही साबित करते हैं कि इनकी भी फंडिंग शायद वहीँ से हो रही है जहाँ से इन आतंकवादियों की हो रही है | कोई भी देशभक्त इंसान आतंकियों का बचाव नहीं कर सकता |

आतंकियों के खिलाफ लिए जा रहे हर एक एक्शन में मैं सरकार, सेना एवं न्यायालयों के साथ हूँ | और हर एक देशभक्त की भांति में भी यही मानता हूँ कि आतंकियों का कोई मानवाधिकार नहीं होता और उनके खिलाफ कोई भी एक्शन लेने के पहले किसी भी तरह के मानवाधिकार के बारे में न तो सोचना चाहिए और न ही उसकी कोई चर्चा होनी चाहिए |

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Varun Shrivastava
Varun Shrivastavahttp://www.sarthakchintan.com
He is a founder member and a writer in SarthakChintan.com.
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