Friday, April 26, 2024
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भारत में बालविवाह एवं पर्दा प्रथा कब से ?

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पौराणिक काल सतयुग से लेकर द्वापर में हुए महाभारत तक बालविवाह एवं पर्दाप्रथा का कोई उल्लेख एवं प्रमाण नहीं मिलता है |

पिछली कुछ सदियों से भारत में पर्दाप्रथा के साथ साथ बालविवाह सर्वव्यापी रहा अर्थात सभी जातियों में पर्दाप्रथा रही एवं बालविवाह का भी प्रचलन सभी जातियों में रहा | बालविवाह ने तो सारी सीमाएं तोड़ रखीं थीं | बीसवीं सदी के अंत तक तथा इक्कीसवी सदी में भी पांच वर्ष के आसपास की कन्याओं के विवाह होते देखे गए हैं | स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जो परंपराएं हमने स्वयं देखीं उनके अनुसार बुंदेलखंड में सवर्ण जातियों में विवाह के लिए चौदह से सोलह वर्ष की आयु कन्याओं के लिए सर्वाधिक उपयुक्त मानी जाती थी एवं लड़कों के लिए अठारह के आसपास उपयुक्त मानी जाती थी | पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित वर्ग व जन जातीय वर्ग में नगरीय क्षेत्रों में कुछ अधिक परंतु ग्रामीण क्षेत्रों में दस वर्ष पूर्व ही लड़कियों का विवाह हो जाता था | लड़के लड़कियों से एक दो वर्ष बड़े होते थे | परंतु शिक्षा के प्रसार के साथ साथ पहले महानगरों में फिर माध्यम व छोटे नगरों में तथा बाद में ग्रामीण क्षेत्रों में भी धीरे धीरे यह आयु सीमा बढ़ती गयी और वर्तमान में कुछ क्षेत्रों व तबकों को छोड़कर सभी वर्गों में में लड़कियां व लड़के वयस्क होने के पश्चात ही वैवाहिक जीवन में प्रवेश करते हैं |

परंतु पर्दाप्रथा अभी भी बड़ी मात्रा में व्याप्त है | देश के अनेकों क्षेत्र ऐसे भी हैं जहाँ पर्दाप्रथा पूरी तरह से समाप्त है | परंतु हिंदी भाषी क्षेत्र विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में इसकी जड़ें गहरी हैं | नगरीय क्षेत्र में अवश्य ही यह प्रथा सीमित हो चुकी है | पौराणिक काल सतयुग से लेकर द्वापर में हुई महाभारत तक बालविवाह एवं पर्दाप्रथा का कोई उल्लेख एवं प्रमाण नहीं मिलता है | राजा दुष्यंत एवं शकुंतला के कालखण्ड, राजा भागीरथ तथा उनके पूर्वजों का कालखण्ड, महाकवि कालिदास एवं सती सावित्री के कालखण्ड, राजा हरिश्चन्द्र का कालखण्ड, सोलह सोमवार व सत्यनारायण व्रत कथा हो अथवा अन्य कोई व्रत कथा हो उनके कालखण्डों में कहीं भी बालविवाह एवं पर्दाप्रथा के उल्लेख व प्रमाण नहीं मिलते | यौवन आने पर बेटी विवाह योग्य हो गयी एवं माता पिता उसकी चिंता करने लगे ऐसा वर्णन कथाओं व ग्रंथों में मिलता है जिनमें कन्यायें यौवन प्राप्त करने के पश्चात ही विवाह योग्य मानी जाती थीं | साथ ही कन्याओं की शिक्षा भी होती थी | अनेकों विदुषी नारियों का वर्णन मिलता है | महाकवि कालिदास एवं अद्वितीय विदुषी राजकुमारी विद्योत्मा के शास्त्रार्थ और विवाह का वर्णन भी इसे प्रमाणित करता है | इन कालखण्डों में पर्दाप्रथा का तो कोई उल्लेख ही नहीं है | त्रेता युग में प्रभु श्री राम तथा उसके लाखों वर्ष पश्चात प्रभु श्री कृष्ण के कालखण्डों की कन्यायें विवाह के समय शिक्षित व वयस्क होती थीं, ऐसा ग्रंथों में उल्लेख मिलता है | कलयुग में भी सम्राट समुद्रगुप्त, विक्रमादित्य, चंद्रगुप्त मौर्य व चाणक्य, पृथ्वीराज चौहान व आल्हा-ऊदल की कथाओं में भी शिक्षित व वयस्क कन्याओं व युवकों के विवाह का वर्णन मिलता है | बालविवाह व पर्दाप्रथा का कहीं भी वर्णन व चिन्ह नहीं मिलता | प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यह प्रथाएं भारत में कब और क्यों प्रारम्भ हुईं और नारी शिक्षा कैसे समाप्त हुई |

एक हजार वर्ष पूर्व पुरुषों के बहुविवाह पर विश्व के किसी भी भूभाग तथा किसी भी धर्म में कोई प्रतिबन्ध नहीं था | राजे महाराजे तथा शक्ति व सम्पदा के स्वामी अनेकों व्यक्ति एक से अधिक विवाह भी कर लेते थे | अरब देशों में कबीलाई संस्कृति थी तथा बहुविवाह का भी प्रचलन था | इस कारण पुरुषों से अधिक संख्या में महिलाओं की आवश्यकता होती थी | बहुविवाह की इक्षा रखने वाले लोग दूसरे कबीलों की महिलाएं लूटते थे जिसकारण युद्ध भी होते थे | महिलाओं के सौन्दर्य, युवावस्था से आकर्षित होकर उनकी लूट व अपहरण का मन न बनाएं तथा आपस में भी महिलाओं के कारण विद्वेष न फैले इस कारण सबसे पहले अरब देशों में पर्दाप्रथा प्रारम्भ हुई और वह भी इस सीमा तक कि सम्पूर्ण शरीर बुर्का में ढका रहे | बिना बुर्का अपनी चारदीवारी से बाहर निकलने की अनुमति नहीं होती थी | यह प्रथा उस कालखण्ड व क्षेत्र की आवश्यकता बन गयी जिसे इस्लाम धर्म का भी संरक्षण मिला | महिलाओं की लूटपाट व उसके कारण होने वाले खून खराबा के नियंत्रण के उद्देश्य से ही पहले नौ फिर चार विवाह की सीमा इस्लाम धर्म के अनुसार बनीं |

भारत सोने की चिड़िया कहलाता था | भारत का व्यापार अरब देशों से लेकर यूरोप तक फैला था | इसी से आकर्षित होकर सिकंदर से लेकर हुमायूँ तक धन प्राप्ति के लिए भारत पर कई आक्रमण हुए | भारत में उस समय अहिंसा का प्रचार चरम पर था तथा आडंबरों की सीमा तक पहुंच गया था और अस्त्र-शस्त्र भी जमीन में गढ़वा दिए गए थे | आक्रमणकारियों का कार्य सरल हो गया | उन्होंने धन, राजपाट, महिलायें, उद्योग – व्यापार लूटा और कब्ज़ा भी किया तथा धार्मिक व शेक्षणिक संस्थाओं को नष्ट किया | शस्त्र विहीन जनता और प्राकृतिक सम्पदा की प्रचुरता के कारण मुगल भारत में ही जम गए | बड़े लोगों की तो लश्कर के साथ महिलायें भी आयीं थीं लेकिन सैनिक अकेले ही आये थे | चार विवाहों की प्रथा थी इस कारण सत्ता के बल पर नरकासुर की तर्ज पर नव-विवाहितों के डोले लूटे जाने लगे | युवा लड़कियों का अपहरण व महिलाओं के साथ दुराचार आम हो गया | लड़कियों का विद्यालय जाना भी दूभर हो गया | अनेकों हिन्दू राजाओं ने मुगलों से सन्धियाँ की और उनके सहयोगी हो गए | मुगलों का आतंक चरम पर था, धर्मान्तरण के द्वारा भी उनके सहयोगी बढ़े | नारी सुरक्षा, नारी सम्मान के लिए न तो सैन्य शक्ति थी न ही देशी राजाओं में एकता थी एवं जनसाधारण अर्थात प्रजा भी सामर्थ्यवान नहीं थी जिस कारण मुगलों द्वारा महिलाओं की लूटपाट व दुराचार पर रोक संभव नहीं था | सक्षम लोग अपनी रक्षा कर लेते थे परंतु निर्धन व कमजोरों पर अधिक अत्याचार हुआ | परिणाम स्वरुप भारतियों ने भी मुगलों का अनुशरण करते हुए महिलाओं को पर्दा में रखना शुरू कर दिया और लड़कियों का विद्यालय जाना बंद किया और विद्यालय बंद हो गए | पांच से दस वर्ष की आयु में लड़कियों के विवाह होने लगे इस आयु में डोले लूटने का कोई लाभ नहीं था | इस कारण भारत में बालविवाह व पर्दाप्रथा प्रारम्भ हुई | बाद में जब मुगल स्थायी रूप से भारत में बस गए तो वे भारतियों के भी राजा हो गए तब ऐसी घटनाएं खुलेआम होना अवश्य बंद हो गयीं परंतु पूर्णरूपेण रोक नहीं लग पायी |

अंग्रेज भारत आये | अठारह सौ सत्तावन तक पूरे भारत पर उनका अधिपत्य हो गया | यहाँ के हिन्दू व मुस्लिम राजाओं ने उनकी या तो अधीनता स्वीकार कर ली या फिर मिट गए | अंग्रेजों का महिलाओं के प्रति सोच व व्यवहार इस्लामिक संस्कृति से भिन्न था | इस कारण अंग्रेजी शासन में धीमी गति से ही सही परंतु नारी शिक्षा प्रारम्भ हो गयी | अनेकों समाज सुधारकों ने नारी शिक्षा के पक्ष में तथा बालविवाह के विरोध में आवाज उठायी | आजादी के बाद से ही धीरे धीरे दोनों प्रथाएं घट रहीं हैं और एक समय समाप्त भी होंगी | आज भारतीय नारी सभी क्षेत्रों में पुरुषों के बराबर उन्नति के शिखर पर बढ़ रही है फिर भी भारत के प्रत्येक बेटी शिक्षित हो इसके लिए बहुत कार्य करना शेष है |

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Om Prakash Shrivastava
Om Prakash Shrivastavahttp://www.sarthakchintan.com
M.A., L.L.B., Advocate, Notary Public Lalitpur (U.P.). He has interest in social service since his student life. He was active in student politics. He was arrested and sent to Jail for 1 month and 10 days for giving a speech in Lucknow University against the cancellation of recognition of Students Unions in India. He was president of Student Union of Bundelkhand College Jhansi (U.P.). He was in jail for 21 days for his participation in J.P. movement before emergency. He leaded a student group for a protest against emergency in India and was in jail for 5 months and 21 days in D.I.R. in Jhansi (U.P.) for this. That’s why U.P. Government has declared him ‘Loktantra Senani’. He is a National Executive Member of 'Loktantra Rakshak Senani Mahasangh'. He is Convener of ‘Lok Jagrati Manch’ and ‘Sarthakchintan.com’. He is an active member of BJP. His many articles have been published in different newspapers.
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