Friday, April 19, 2024
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मध्यम वर्ग – अधिकतम दर्द

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आज़ादी के बाद प्रारम्भ से औद्योगिक क्षेत्र में उन्नति तथा विदेशों की तर्ज़ पर महानगरों की उन्नति पर अधिक जोर था | स्वरोजगार को बढ़ावा नहीं था इस कारण लघु उद्योगों का विस्तार नहीं हुआ और जो थे भी वह भारी उद्योग के दवाब में ध्वस्त हो गए | मध्यम वर्ग का मुख्य आधार सरकारी नौकरी, औद्योगिक महानगरों में नौकरी, खुदरा व्यापार की मध्यम व छोटी दुकानें, अध्यापन, वकालत आदि थे | ग्रामीण क्षेत्र के विकास पर ध्यान कम था | सिंचाई, शिक्षा, चिकित्सा, यातायात आदि का आभाव था | ग्रामीण हस्तशिल्प समाप्त होता गया | परिणाम स्वरुप रोजगार व शिक्षा की तलाश में नगरों व महानगरों की ओर पलायन दिनोंदिन बढ़ा | जिस कारण नगरों में जनसँख्या बढ़ी जिसमें अधिसंख्य ने इसी वर्ग का स्वरुप खड़ा किया | उच्च मध्यम वर्ग, निम्न मध्यम वर्ग तथा तृतीय श्रेणी से मिलकर मध्यम वर्ग बनता है |

आज के राजनैतिक व्यक्ति व पार्टियां मध्यम वर्ग का चिंतन नहीं करते क्योंकि मध्यम वर्ग वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल नहीं होता | देश में सबसे दयनीय स्थिति इसी वर्ग की है | परिवार के सारे लोग नहीं कमाते क्योंकि इस वर्ग की आजीविका शिक्षा पर आधारित होती है | परिवार में एक व्यक्ति कमाने वाला होता है शेष खर्च करने वाले होते हैं | वह उच्च वर्ग के लोगों के बीच उनके सहायक व अधीनस्थ कर्मचारी आदि के रूप में रहता है | बच्चों की अच्छी शिक्षा जो बहुत महँगी है उसका दवाब, नौकरी अथवा जीवन यापन का समुचित साधन निर्मित करने का दवाब तथा जिस वर्ग के निकट रहता है उस के अनुरूप जीवन स्तर व जीवन शैली का दवाब और इस सबके साथ साथ सभी प्रकार के पारिवारिक, सामाजिक दायित्व पूरे करने का दवाब झेलते हुए जीवन व्यतीत करता है | इसी कारण मध्यम वर्ग का जीवन सर्वाधिक संघर्षपूर्ण एवं कठिन होता है तथा वह परिस्थितियों का दास बनकर रह जाता है | यत्र – तत्र चर्चाओं में भाग लेकर अपना आक्रोश तो प्रकट करता है परन्तु समय, धन व जनबल के आभाव के कारण सत्ता में बैठे लोगों को मध्यम वर्ग के हित चिंतन के लिए विवश नहीं कर पाता |

महंगाई व कालाबाजारी से सबसे अधिक मध्यम वर्ग की पिसता है | उद्योगपति, बड़ा व्यापारी तथा अन्य उत्पादक वर्ग अपना दाम बढ़ा लेते हैं | मजदूर व अन्य श्रम-जीवी वहभी अपना दाम बढ़ा लेते हैं | परन्तु मध्यम वर्ग के व्यक्ति के पास कोई मार्ग नहीं होता सिवाय अपने व परिवार के खर्चों में कटौती करने के | वह दोनों वर्गों की मार खाता है अर्थात दो पाटों के बीच पिसता है | भ्रष्टाचार की की मार भी सर्वाधिक इसी वर्ग पर पढ़ती है | यह वर्ग न तो धन का दवाब बना पता है और न ही राजनैतिक दवाब बना पाता है | पिछले कुछ वर्षों में महंगाई व भ्रष्टाचार ने पिछले सरे रिकॉर्ड तोड़ दिए | इसकी रफ़्तार दिनों दिन बढ़ी और रुकने के आसार नहीं दिखे | इन हालातों में मध्यम वर्ग की कमर टूट गयी, आक्रोश चरम पर पहुँच गया | यही कारण है कि अन्ना हजारे एवं बाबा रामदेव के आंदोलन में इस वर्ग को आशा की किरण दिखी और वह जनसैलाब के रूप में टूट पड़ा |

सत्ता की पुरानी संस्कृति के अनुसार संपन्न वर्ग हमेशा प्रभावशाली रहा और सत्ता पर हावी रहा | वोटों का गणित बैठाने के लिए अल्पसंख्यक व कमजोर वर्ग को लोक लुभावन वादों के जरिये प्रभावित करके सत्ता हासिल करना कारगर रास्ता रहा |

परंपरागत रूप से देश में महत्वपूर्ण निर्णय मुख्यतः दो आधार पर लिए जाते हैं | प्रथम – उच्च तथा सक्षम वर्ग हर स्थिति में लाभ में रहे, द्वितीय – वोट बैंक किस प्रकार से बने व बढ़ता रहे | मध्यम वर्ग सदैव से ही सत्ता में बैठे हुए लोगों की उपेक्षा का शिकार रहा है एवं आज भी है | सबसे अधिक बुद्धिजीवी इसी वर्ग में हैं | परन्तु समय और धन का आभाव रहता है इस कारण संगठित होकर आवाज़ बुलंद नहीं कर पाता | बहस में बहुत भागीदारी होती है परन्तु सीमित साधनों के कारण टी वी चैनल व समाचार पत्रों पर निर्भरता अधिक रहती है | आवश्यक आवश्यकताएँ जुटाने में सार धन, समय एवं ऊर्ज़ा लग जाती है इस कारण राजनैतिक दलों को इसका भय नहीं रहता है, वे इस वर्ग को बिना दांतों वाला शेर मानते हैं | क्योंकि सक्षम वर्ग ने जातिवाद और जातीय समीकरण की राजनीति को शस्त्र बनाया तो मध्यम वर्ग भी उसमें रंग गया जिसका परिणाम यह हुआ कि उसकी शक्ति क्षीण हो गयी | धनाढ्य वर्ग राजनीति पर काबिज हो गया तथा कमजोर वर्ग तो धनबल के प्रभाव में रहता ही है | पहले कुछ पार्टियां इस वर्ग की चिंता कर लेती थी यही कारण था कि उनको इस वर्ग का समर्थन मिलता रहता था | परन्तु अब स्थिति बदल गयी है और सारी पार्टियां सत्ता रूढ़ बन गईं | हर पार्टी कहीं न कहीं सत्ता में रहती है, कोई केंद्र में गठबंधन में होता है तो कोई किसी न किसी प्रदेश में सत्ता में पूर्ण रूप से या भागीदार होता है | इस कारण सभी पार्टियां मजबूत और भरोसेमंद वोट बैंक की चिंता में रहती हैं | दुर्भाग्य से मध्यम वर्ग सबसे कमजोर वोट बैंक माना जाता है | इस कारण जब योजनाएं बनती हैं तथा महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाते हैं तब इस वर्ग का ध्यान नहीं रख जाता | फिर आज तो जन-बल, धन-बल तथा बाहु-बल का युग है जिसमें मध्यम वर्ग को स्वयं अपने हित चिंतन के लिए खड़ा होना होगा | सपरिवार वोट डालने की आदत के साथ साथ अपने वर्ग के हित के मुद्दों, राजनैतिक दलों की नीति, नियत व आचरण पर विचार करके अपने वर्ग में माहौल बनकर वोट देने का काम करना होगा तभी यह वर्ग भी राजनैतिक दलों के चिंतन का विषय बनेगा | अभी हाल के समय में इस वर्ग ने कुछ जागरूकता दिखलाई परिणाम स्वरुप कांग्रेस पार्टी को केंद्र व प्रदेशों के चुनावों में बड़ा झटका लगा और कांग्रेस अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए बिहार व पश्चिम बंगाल में गठबंधन के लिए विवश हुई | ईमानदारी से यदि आम आदमी को खोजेंगे तो पाएंगे कि उच्च तो ऊंची हैसियत के कारण खास है तथा निर्धन व अशिक्षित वर्ग अच्छा वोट बैंक होने के कारण चिंतन का विषय होने के कारण खास हो जाता है | संख्या बल में सबसे बड़ा वर्ग मध्यम वर्ग का व्यक्ति ही वास्तविक रूप से आम आदमी है जो अनेकों जख्म लिए हुए जी रहा है | उसके जख्मों पर हाल के वर्षों में बहुत नमक छिड़का गया | प्रतीक्षा है कि कोई दवा छिड़कने वाला भी मिलेगा |

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Om Prakash Shrivastava
Om Prakash Shrivastavahttp://www.sarthakchintan.com
M.A., L.L.B., Advocate, Notary Public Lalitpur (U.P.). He has interest in social service since his student life. He was active in student politics. He was arrested and sent to Jail for 1 month and 10 days for giving a speech in Lucknow University against the cancellation of recognition of Students Unions in India. He was president of Student Union of Bundelkhand College Jhansi (U.P.). He was in jail for 21 days for his participation in J.P. movement before emergency. He leaded a student group for a protest against emergency in India and was in jail for 5 months and 21 days in D.I.R. in Jhansi (U.P.) for this. That’s why U.P. Government has declared him ‘Loktantra Senani’. He is a National Executive Member of 'Loktantra Rakshak Senani Mahasangh'. He is Convener of ‘Lok Jagrati Manch’ and ‘Sarthakchintan.com’. He is an active member of BJP. His many articles have been published in different newspapers.
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